(क्षमा करेंगे हलफनामा की पहली और दूसरी कड़ी के बीच लम्बा अंतराल हो गया. कुछ व्यक्तिगत कारणों से ऐसा हुआ. अब इस संस्मरण को आगे बढ़ा रहा हूँ.)
इजराइल अंसारी से मेरी मुलाक़ात बहुत बाद में हुई. उस वक़्त पराशर को यह बात खली की उनकी रिपोर्ट नहीं छप सकी हालाँकि बाद में उनकी रिपोर्ट भी दिल्ली की एक समाचार पत्रिका में छप गयी. एक दिन कोयला मजदूर संघ के नेता मधुसूदन सिंह भैया से मिलने आये. वे गिरिडीह के तत्कालीन सांसद रामदास सिंह के भतीजे थे. उनका यूनियन हिंद मजदूर संघ से संबध था हालाँकि राजनैतिक रूप से वे लोग भारतीय जनता पार्टी से जुड़े थे. बहरहाल मधुसूदन सिंह ने एक खदान का जिक्र किया जो सर्वाधिक असुरक्षित था लेकिन जिसे सुरक्षा का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था. मेरी दिलचस्पी बढ़ी. भैया के सामने तो चुप रहा लेकिन जब वे बहार निकले तो उनसे खदान के बारे में डिटेल जानकारी मांगी. उन्होंने कोल इंडिया के चेयरमैन को संबोधित अपने पत्र की प्रति मुझे दे दी. मैंने उसपर एक रिपोर्ट तैयार कर नवभारत टाइम्स के पटना संस्करण में भेज दी.उन दिनों नभाटा में फ्री लांसर्स के लिए एक साप्ताहिक पेज निकलता था. उस पेज में रिपोर्ट छप गयी. जिस खदान के संबंध में रिपोर्ट थी उसके प्रोजेक्ट ऑफिसर पारिवारिक मित्रों में थे. लेकिन उन्होंने कभी मुझसे इसके बारे में नहीं पूछा. लेकिन मधुसूदन सिंह मेरे सूत्र बन गए.
मित्रता का दायरा कुछ फैला. एक मित्र मिले रमाकांत तिवारी. फुसरो बाज़ार में उनका प्रिंटिंग प्रेस था. उनकी रूचि कुछ और थी और कर कुछ और रहे थे. बे गांजा पीने के शौकीन थे. इसका सारा इंतजाम वे साथ रखते थे. तांत्रिकों, अघोरों और गंजा पीनेवाले साधुओं से उनकी खूब पटती थी. उनके प्रेस में पत्रकारों, साधुओं और निठल्ले लोगों का जमावड़ा लगता था. उनका सरल स्वभाव मुझे पसंद आया. एक बार उन्होंने रजरप्पा का जिक्र किया. कुछ दिलचस्प बातें बतायीं. मैंने स्टोरी लिखने की इच्छा जताई तो वे अगले ही दिन चलने को तैयार हो गए.
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2 टिप्पणियाँ:
लगता है हल्फनामा काफी रोचक रहेगा। कडियों मे इतना लम्बा अन्तराल रोचकता कम कर देता है। शुभकामनायें।
माफिया और मीडिया के अंतर्संबंधो को बहुत करीब से देखा, समझा और भोगा है....
आपका ये खुलासा कईयों के लिए शामत बन जायेगा .....
ढेरों बधाईयाँ इस हिम्मत के लिए ......!!
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