मित्रों! मेरा नाम देवेन्द्र गौतम है. मैंने झारखण्ड के कोयला खदान क्षेत्रों में डेढ़ दशक तक पत्रकारिता की है। माफिया और मीडिया के अंतर्संबंधो को बहुत करीब से देखा, समझा और भोगा है। मैं उस दौर के मीठे-खट्टे अनुभवों को आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ। सबकुछ सच-सच बताना चाहता हूँ। मेरा उद्देश्य किसी की फजीहत करना नहीं बल्कि उन कुसंस्कारों का खुलासा करना है जो चौथे खम्भे को दीमक की तरह चाट रहे हैं। सावधानीवश कुछ नाम बदले जा सकते हैं लेकिन पढने वाले आसानी से इशारा समझ जायेंगे। कहानी लम्बी है धीरे-धीरे आगे बढ़ेगी।
मैं १९८६ में होली के मौके पर फुसरो पहुंचा था। यह इलाका उस वक़्त गिरिडीह जिले में आता था। वहां सेन्ट्रल कोलफील्ड लि. के तीन प्रक्षेत्र पड़ते थे। ढोरी, करगली और कथारा। इनके अंतर्गत कई परियोजनाएं और हर परियोजना के अंतगत कई कोयला खदानें पड़ती हैं। मेरे बड़े भैया आरपी सिन्हा उस वक़्त ढोरी एरिया में अभियांत्रिकी विभाग के स्टाफ आफिसर थे । उस वक़्त तक मेरी कई ग़ज़लें उर्दू-हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं में छप चुकीं थीं । एक साप्ताहिक अखबार के संपादन के क्रम में अपने चचेरे भैया और भाभी से मनमुटाव हो चुका था । होली बीतने के बाद भैया ने कहा कि पत्रकारिता करनी है तो यहाँ भी कर सकते हो। बस मैंने वहीँ रहकर पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरू कर दिया। मेरा परिचय शायर मित्र खुर्शीद तलब से था जो करगली में रहते थे । वे पहले आरा में रहते थे और मेरी तरह उर्दू के उस्ताद शायर जनाब सुलतान अख्तर के शागिर्द थे । बेरमो में खुर्शीद तलब का संबंध कुछ पढने-लिखने वाले लोगों से था। उनके जरिये कुछ संपर्क बने। उनमें एक थे सर्वेश्वर पराशर जो कथारा में रहते थे और लम्बे समय से स्लरी से ब्रिकेट बनानेवाले ठीकेदार इजराइल अंसारी पर स्टोरी कर रहे थे। उनके पास स्टोरी भी थी और तश्वीरें भी। कई पत्रिकाओं में भेजीं भी थीं लेकिन छप नहीं पाई थी। उन्होंने मुझे भी तस्वीरें और सूचनाएं उपलब्ध करवाईं। मैंने स्टोरी तैयार कर मुंबई से प्रकाशित पाक्षिक पत्रिका सूरज समाचार विचार को प्रेषित कर दी। कुछ दिनों बाद स्टोरी छप गयी। पता चला कि इजराइल अंसारी ने उसकी कई प्रतियाँ खरीदीं। मुझे बताया गया कि इस इलाके के माफिया सरदार पत्रकारों से पूछते हैं कि पैसा चाहिए या गोली।
शेष कल.....
Labels : wallpapers Mobile Games car body design Hot Deal