पूरे दिन रजरप्पा के आसपास कुदरत के नज़रों से दो-चार होते रहे. दामोदर नदी के उसपार वीराने में काफी देर तक चक्कर लगाते रहे. रंग विरंगे पत्थरों को इकठ्ठा करते रहे. एक जगह आधा तराशी हुई बड़ी-बड़ी चट्टानें दिखाई पड़ीं. यह चट्टानें ठीक उसी पत्थर की लग रही थीं जिससे छिन्नमस्तिका मंदिर का निर्माण हुआ है. लगा जैसे मूर्तिकार के पत्थर तराशते-तराशते सुबह हो गयी और वह उन्हें अधूरा छोड़कर चला गया. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण देवताओं के अभियंता विश्वकर्मा ने एक रात में किया था. यदि वे पत्थर पत्थर तराश रहे थे तो सामग्री उनके आकलन से ज्यादा कैसे हो गयी समझ में नहीं आया. बहरहाल वापस लौटकर हमने तकरीबन सभी मंदिरों के चक्कर लगाये. बताया गया कि यह तंत्रपीठ है और यहां नरबलि के बिना किसी मूर्ति कि स्थापना होने पर अनिष्ट हो जाता है.इसलिए सभी मंदिरों के शिलान्यास के पूर्व नरबलि दी गयी है. कुछ देर चक्कर लगाने के बाद हम काला बाबा की कुटिया में लौट आये. काला बाबा की कुटिया में मंदिर से जुड़े प्रायः लोग दम लगाने की नीयत से आते थे. गपशप के दौरान कई अहम् सूचनाएं दे जाते थे. हमें स्टोरी के लिए कई दिलचस्प जानकारियां अनायास ही मिल जा रही थीं. भैरवी नदी के उस पार मंदिर वाले इलाके में एक महिला और पुरुष जटाधारी दिखे. पता चला कि वे बोडिया बाबा हैं और उनकी भैरवी उनके साथ ही रहती थी. तंत्र साधना में भैरवी की अहम् भूमिका होती है. हर तांत्रिक के पास अपनी भैरवी होती है. कुछ लोग जिन्हें बाहर की भैरवी नहीं मिल पाती, अपनी पत्नी को ही भैरवी बना लेते हैं. कला बाबा के पास कोई भैरवी नहीं थी. अघोर पंथ में इसकी स्थाई ज़रूरत नहीं होती. जरूरत पड़ने पर दूसरे की भैरवी से काम चला लेते हैं. बहरहाल रजरप्पा में अच्छा लगा हमने तय किया कि जब भी मौक़ा मिलेगा यहां आयेंगे. स्टोरी लायक मसाला मिल चुका था. इसलिए अगली सुबह हम बेरमो वापस लौट आये. (जारी....)
---देवेंद्र गौतम
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2 टिप्पणियाँ:
रोचक विवरण और सार्थक जानकारियां हैं आपकी पोस्ट में .....आपका आभार
रजरप्पा किस जिले व किस राज्य में है कृप्या मार्गदर्शन दे
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